कल रात
चैन की नींद
सोया है
सूरज
चाँदनी की गोद में
तभी आज
मनचला बन रहा
हफ्तों की थकान
उतर गयी शायद
इसलिय खेल
नए खेल रहा
कोई देख न ले
इसलिय
बादल की ओट
साथ लिये चल रहा
कभी कभी बादलों
के पीछे से देखता
हवाओं से बेर
लिया मालूम होता है
इसलिय वो भी
चुप है आज
न जाने क्या
बडबडाता है ये बादल
गड़गड़ कर
मन ही मन
भुनभुना रहा
हवा ने चिड
कर नोंच लिए है
बादल के फाये कुछ
उसी का शिकायत
बादल सूरज से
कर रहा
बादल ने अपनी
टोली को
फिर आवाज़ लगायी
गड़ गड़
भड भड कर
पूरे कुनबे को
बुलाया
सूरज ने बादल
की बातों को जो
किया अनसुना
वो गरज बरस
कर बोला -सूरज
अब तू जा
नील आसमा
ने बादलों का
चादर ओढा
सूरज ने भी गुस्से
से यूँ मुँह मोड़ा
सफ़ेद चादर
लगने लगी काली
नाची घूंघरू पहन
मेघा रानी
हवा भी चुप न
रह सकी झूमी खूब
मेघा संग
सूरज को मुँह चिढ़ाया...
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