Tuesday 24 September 2013

हवाओं की तेज़
चलती सांसे
डराती है मुझे
कुछ देख आई
शायद
घबरा गयी
हाफ़ रही है
न जाने कहाँ
का माहोल
इंसानियत के जानवरों
ने बिगाड़ दिया
सोच रही हूँ क्या
कह दूँ इन को
की ये थम जाये
बहक जाये
शांत हो जाये
कुछ पल के लिए ……
फिज़ा के दलालों
का ईमान नहीं
धर्म नहीं ,
जात नहीं
इंसानियत नहीं
ये सिर्फ
फिज़ा को बदनाम
करना जानते है
सड़क पर ला कर
सरे आम करना
जानते है
आबरू का मतलब
उनके लिय कुछ नही
आबरू के नाम पर
कपडे उतारना
जानते है
तू सब्र कर
थोडा थम जा
इतना धडकनों को न
बढ़ा ......चल
तेरे लिए गुनगुना दूँ
तू बैठ ....
तेरा मन
मैं बहला दूँ ......

Sunday 22 September 2013


बदलते समाज के परिवेश में 
हम अब समा नहीं पाती 
ठेकेदारों की नंगी समझ और 
जो कहते हैं अपने पहनावे पे 
हमें शर्म नहीं आती...
आज लड़के कुछ हैं अगर 
तो हमने भी सबका 
सर गौरव से ऊँचा किया 
ज़मीं से आसमां तलक 
कोई नही क्षेत्र जिसे 
अपना ना बना लिया... 
हम आन है शान है 
हर समाज की पहचान है 
मुश्किलों से दुनियाँ में 
परिवर्तन हो पाता है
हम उस परिवर्तन की मिसाल है...
हम बेटी,बहन,पत्नी और माँ हैं
ये समाज ये दुनिया हम से है
और हम इसकी पहचान हैं.... 
समझो अपनी नासमझी को 
देवी से सभी डरते हो 
भूल न हो जाये तुम से 
कितने जप तप व्रत करते हो....
अगर औरत का जन्म लिया कभी 
तो उसकी सहनशीलता को जानोगे 
एक औरत के रूप कई 
हर रूप को तुम मानोगे...
बेटियाँ जीवन हैं 
जीवन का आदर करो 
अपने आने वाले कल के लिए 
बेटियों का सम्मान करो....

Monday 16 September 2013

बदल गये
शब्द
कागज पर
गिर कर
मन में
थे तो
शांत बहुत थे
ज़मी
मिली जो
लगे भड़कने
विद्रोह के कोर
लगे फांकने
मतलब समझू तो
बेमतलब है ये
यूँही मानूं
तो मेरे है ये
सोच को थामूं
जो मन बहके
दिल की सुनूं तो
तन महके
उफ़...!!!
ये शब्द....
शब्द ही रहो
न बनो मतलब किसी का
तू नहीं मतलबी
तू है सभी का…….

Saturday 14 September 2013

'क्षणिका'......

हिंदी पर
बिंदी का नहीं
अब किसी
को पता
पीढ़ी दर पीढ़ी
बिगडती
दशा .....

कुछ अधखुले बीज....


कुलबुलाते कुछ अधखुले बीज
मेरे बरामदे के कोने में पड़े हैं
शायद माँ ने जब फटकारे
तो गिर गए होंगे
बारिश के होने से कुछ पानी और
नमी भी मिल गयी उन्हें
सफाई करते ध्यान भी नहीं दिया
बड़ी लापरवाह है कामवाली भी
दो दिन हुए हैं और बीजों ने
हाथ पैर फ़ैलाने शुरू कर दिए
हाँ ठीक भी तो है
मुफ्त में मिली सुविधा से
अवांछित तत्व फलते-फूलते ही हैं
पर अब जब वो यूँही रहे तो
बरामदे में अपनी जड़े जमा लेंगे
फिर ज़मीन में पड़ेंगी दरारे भी
मेरी माँ का खूबसूरत सा
बरामदा चटखने लगेगा
माँ को दुःख होगा...
क्यों न मैं ही इसे हटा दूँ अभी
इसकी बढ़ती टांगों से पहले
कल को ये घर में बदसूरती लाये
क्यों न मैं ही इसका वजूद मिटा दूँ
या इसे एक नयी ज़मी दूँ
जहाँ ये पनप सके.....जन्म ले सके
अभी ये नापसंद है माँ को
तब ये माँ का दुलार पा सके
एक हिस्सा बन जाये शायद
माँ के इस बरामदे का
खिली पत्तियाँ और रंगीन फूलों से
तब माँ को ख़ुशी होगी
और मुझे भी....

Monday 9 September 2013

हँस भी सकते है
रो भी सकते है
ये देश का मामला है
आप गा गा के मांग भी सकते है ......
सच को झूठ
कहने में क्या जाता है,
जिन्दा लोग नहीं मिलेंगे
यहाँ खामोश को लाश
कहने में क्या जाता है...
बैठ लो बस
करीब महंत के
खुद को पंडित
कहने में क्या जाता है...
करते रहो बलात्कार
जैसे अत्याचार
खुद को पवित्र
कहने में क्या जाता है...
भर देना नोटों से जेबें
सभी की फाइले गायब
करने में क्या जाता है...
दोषों से पल्ले यूँ
झाडेंगे पल में
घर की खेती बीमार
पड़ जाने में क्या जाता है...
देख कर तो
खरबूजा भी रंग बदले
व्यक्ति के गिरगिट
बन जाने में क्या जाता है...
सत्य की खुजली लगी
जो न मिटे
सत्यवान को
मिटाने में क्या जाता है...
देश गया देशवासी गया
आज के दोर में
भ्रष्टाचारी बनने में क्या जाता है...
गरीबी, भूखमरी,
सूखा, आकाल
सब दिमागी फ़ितूर
बोलने में क्या जाता है...
शिक्षा के बाज़ार में
आरक्षण के नाम पर
साल बरबाद किये
जाने में क्या जाता है...
सरकार के लिए
चिल्लाते सभी
वोट के नाम पर घर बैठ
जाने में क्या जाता है...
अपना गुस्सा
मासूमो पर निकालना
मार काट कर व्यवस्था
कहने में क्या जाता है...
किस के हाथ में देश अपना?
कौन अपना?
अपने को विरोधी कह
देने में अब क्या जाता है...
कोई तो सच का दमन थामे
इन्सां जागे कोई
यूँ भीड़ से अलग
चलने में क्या जाता है....

Monday 2 September 2013


तिनके - तिनके समेट 
बुन रही अपना 
आशियाना 
सबसे ऊँची डाल तलाशी 
हो न जाये कहीं 
बैरी का निशाना 
अरमां कई पाल रही 
सपनों से घर सजा रही 
आसमां के उड़नखटोले पर 
जीवन अपना उतार रही 
परिवार अपना बनाना 
हर बुराई से उसको बचाना 
करना है कठिन जतन 
अपने बच्चो को आदर्श बनाना 
यूँ बुनूंगी हर रेशा घास का 
मेरे लाड़ की 
गर्माहट उसमें समाएगी 
हर मौसम से मेरे 
घरोंदे की दीवारें 
बच जायेंगी 
है पता हर मंशा का मुझे 
सोच समझ कर 
बढ़ना है मुझे 
अपनों का ख्याल 
पहले है मुझे 
अपना आशियाना 
करना सुरक्षित है मुझे...