Friday 17 May 2013

तकते हो क्या तुम
चेहरे की तामीर को
देख सकते नहीं यूँ
वफा की तस्वीर को

इबादत हुस्न की क्या
हुआ जो तुमने की
भूल जाओगे बस
कुछ रोज़ में इस बात को

लरजते लबो की आरजू
दिल में छुपाये हो
भूले हो क्या अपने
अहम के ख्याल को

इतराते ख्यालों से
जो तुम मदहोश हो
बेवजह की बात है
खोलो बंद आँख को

इक रोज़ इल्म की
राह में जब तुम खड़े हो
ख्याल करना अपने
हर चुभते हर्फ़ को

लायी गर कभी जो
सच्ची भावना मन में
सोच कर उस पल के
सुखद भाव को
गिरा लेना अपने
ओहदे की दीवार को

लानत भेजो महंगे
ऐशो आराम को
रखो अरमां बनाये
तुमको नायाब जो