Monday 26 August 2013

एक छोटी सी कहानी 
बारिशों की वादी 
चमकता 
शीशे सा पानी
दूर जलती 
धीमी लो 
लहराती कांपती रौशनी 
बिस्तर पर 
आँखे मिचमिचाती 
ख्याल बटोरती
नन्ही रानी 
भाग कर 
खिड़की पर जाये 
दूर तलक
नज़र दोड़ाये 
बैठे ……आके धम से 
लेके सवालों की सानी
नहीं उसको 
ख़ुद खबर 
क्यूँ करे दिल 
मनमानी 
इंतज़ार करती 
यूँ लगता है 
आने वाला कोई 
ख़ास जान पड़ता है 
उढ़ती बैठती 
कदम ताल सी करती 
कुछ कहे मुख से 
तो हो मेहेरबानी 
वक़्त कुछ 
उहापोह में बिताती 
उँगलियों को 
दाँतों से चबाती 
खड़ी दरवाज़े पर 
करती पलो की निगेहबानी 
लो बहार लौट आई जैसे 
बिछड़ा सरहद पार 
मिला हो ऐसे 
ये तो माँ थी 
जो किताबे संग 
लायी थी 
कितने दिनों से 
रानी ने जो मंगवायी थी 
हाथ बढ़ा कर
थेला छीना 
माँ तुम बैठो 
मैं पानी लायी 
कह कर रानी ने
सरपट चाल बढायी 
झट से गिलास 
माँ को सरकाया 
किताब का थेला 
कंधे पर लटकाया 
ख़ुशी ख़ुशी में
हर काम निपटाया 
रसोई समेट 
आँगन बढ़ाया 
चढ़ गयी 
ऊँची अटरिया पे 
किताबों खोल 
पढ़ रही 
उत्सुकता से 
आज रानी के मन का
महका उपवन 
किताबों के गुल से 
खिल गया है बचपन 
पंख लगे उसे 
ऊँची उडान के 
समेट ले वो 
पल में जहान ये 
बचपन इसी 
ख़ुशी का मुहताज बस 
यही अधिकार हर 
बच्चे का आज बस.....

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