मन के आकाश पर शब्द पंछियों सी उड़ान भरा करते है और अपनी चहचाहट से शब्दों के मायने बढ़ा देते है जिसका ज़िक्र लिखने वाले हाथों से कहीं ज्यादा पढ़ने वाली नज़रें करती है....ऐसे ही शब्दों के पंछियों संग... कुछ मेरी बात ....
Tuesday 30 July 2013
Friday 26 July 2013
देखो
स्थति कैसी आई
घोर विडम्बना
स्थति कैसी आई
घोर विडम्बना
सुन ओ भाई
गरीबी अब
गरीबी अब
27 रुपए में बिक गयी
नेताओ ने खूब
नेताओ ने खूब
उपाय निकाला
चंद घंटो में
चंद घंटो में
बरसों की समस्या
का किया सफाया
जितना
का किया सफाया
जितना
मर्ज़ी आंकड़े
घटाओ बढाओ
कल जो बिन पटरी
अब उसे
घटाओ बढाओ
कल जो बिन पटरी
अब उसे
पटरी पे लाओ
सुनते आये
सुनते आये
गरीबी के लिए योजना
हाय
हाय
देखो अब हर योजना में
गरीबी अलग अलग
जिसके घर में
गरीबी अलग अलग
जिसके घर में
50 रुपए जो निकले
फिर उसे
फिर उसे
आंकड़े खोजने निकले
बद से बद्तर
बद से बद्तर
हालत देश की
उस पर
उस पर
फर्जी हुए कागजात
क्या धड़ल्ले से
क्या धड़ल्ले से
चला रहे
नेता अपनी दुकान
टमाटर से सस्ती और
प्याज से अच्छी
पूरी सेल और
नेता अपनी दुकान
टमाटर से सस्ती और
प्याज से अच्छी
पूरी सेल और
फुल डिस्काउंट में
मात्र 12 रुपए में
खरीदी भूख
मात्र 12 रुपए में
खरीदी भूख
गरीब की
अब इस का
अब इस का
व्यापार करेंगे
एक्सपोर्ट कर
एक्सपोर्ट कर
देश का नाम करेंगे
ऐसे नेताओ ने ही तो
अपना देश
ऐसे नेताओ ने ही तो
अपना देश
विकासशील बनाया
जो जहाँ था
जो जहाँ था
उसे और गिराया
चलता रहे
चलता रहे
गिरता मरता
देश का विकास
बस पूरी होती रहे
नेताओ की
देश का विकास
बस पूरी होती रहे
नेताओ की
लालची भड़ास
कभी नहीं
कभी नहीं
बदलेगा देश अपना
कितने मर
कितने मर
गए इसकी
तरक्की का लिए
तरक्की का लिए
सपना
बहुत मधुर लगता है
''मेरा भारत महान ''
बहुत मधुर लगता है
''मेरा भारत महान ''
सुनना
पर नामुमकिन
पर नामुमकिन
है यहाँ
एक सही नेता चुनना
बिना नमक
एक सही नेता चुनना
बिना नमक
जो दाल
का हाल होता है
वही सही नेता
का हाल होता है
वही सही नेता
के बिना
देश का हाल
देश का हाल
होता है
सुनलो दोस्तों
भारत को बचाने को
अब कोई
सुनलो दोस्तों
भारत को बचाने को
अब कोई
भगवान भी नहीं
ये रोज़ अंधों
ये रोज़ अंधों
के हाथों बिकता है.....
Thursday 18 July 2013
जब सोचने का नज़रिया
बदल जाये तो
राहें भटक जाया करती हैं,
मंजिलें तब दूर कहीं
खो जाया करती हैं...
काफिले के संग
चल निकलो तो बात अलग,
वर्ना परछाईं भी अक्सर
साथ छोड़ जाया करती है...
वो लोग अलग होते हैं
जो डूब के पार निकलते हैं,
हौसलों से तो बिन पंख भी
ऊँची उडान भरी जाया करती है...
स्वार्थी की कोई ज़ात नहीं
जानवरों सा जीवन उसका,
इंसान को तो चुल्लू भर पानी में भी
मौत आ जाया करती है...
ऊपर वाले ने भी
खेल अजीब खेला है,
जो दुनिया उजाड़े किसी की
किस्मत उसी को मिल जाया करती है,
'पियू' और क्या लिखे उसके सामने
प्यार करने वालों की तो अक्सर
लकीरें भी धोखा दे जाया करती हैं...
Monday 8 July 2013
ये किस्मत का दोष है या
अपनों से मिला रोष है
उम्र के अंतिम पड़ाव में
इस सूखी धरती पर मैं भूखा
तन पर गरीबी की चादर तक नहीं
पेट में मांग कर खायी गयी
एक रोटी भी नहीं
किस ओर तलाश करूँ कुआँ अपना
बरसों से खाया नहीं भर पेट
ना देखा कोई सपना
अपनों की परिभाषा मैं भूल चुका हूँ
परिणाम अच्छाई का भूगत चुका हूँ
अब नहीं किसी से कोई आशा
ज़ख्म अपने खून से ही खा चुका हूँ
अब जब तक ज़िन्दगी
गिरते उठते चलनी है
तो रोज़ प्याला भरना है
मुझे इस जंगली भूमि को
अपने पसीने से सीचना है
भूखा हूँ थका नहीं
रुका हूँ थमा नहीं
बूढ़ा हूँ पर मरा नहीं
बैठ लूँ फिर शुरू करूँगा
मशीन नहीं इन्सान हूँ
हौसलों की जान हूँ
मैं एक किसान हूँ...
Wednesday 3 July 2013
मैं और भाई साथ .....
मैं और भाई साथ
फिर रिमझिम बरसात
अपनी कागज़ की कश्ती
कश्ती और उन पर
पतंगे भी हुए सवार
दूर तक आती माँ की डाँट
भाई में भीग रही
सुन भाई
थोडा छाता मुझे भी बाँट
मैं भीग गयी जो
माँ तुम्हे बहुत डाँटेगी
पता है फिर न लाओगे तुम साथ
ठंडी हवा ये सुहाना मौसम
चलो यही खेले भाई हम तुम
अभी नहीं जाना
मिल के खेले कुछ देर साथ
चलेंगे माँ जब फिर आवाज़ देगी
तब तक मज़े ले
इस बरसात के साथ
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