Tuesday 30 July 2013


एक अरदास मेरी या रब तेरे वास्ते 
रख अपने दिल में थोड़ी जगह मेरे वास्ते 
होले होले बच्चा भी संभाले 
मेरी गलती तू माफ़ कर 
मेरे खडे होने वास्ते 
हाथ फैलाये मैं बैठी तेरे दरबार में 
कर दे रहमत की नज़र खुदायी वास्ते

Friday 26 July 2013

देखो
स्थति कैसी आई
घोर विडम्बना 
सुन ओ भाई
गरीबी अब 
27 रुपए में बिक गयी
नेताओ ने खूब 
उपाय निकाला
चंद घंटो में 
बरसों की समस्या
का किया सफाया
जितना 
मर्ज़ी आंकड़े
घटाओ बढाओ
कल जो बिन पटरी
अब उसे 
पटरी पे लाओ
सुनते आये 
गरीबी के लिए योजना
हाय
देखो अब हर योजना में
गरीबी अलग अलग
जिसके घर में 
50 रुपए जो निकले
फिर उसे 
आंकड़े खोजने निकले
बद से बद्तर 
हालत देश की
उस पर 
फर्जी हुए कागजात
क्या धड़ल्ले से 
चला रहे
नेता अपनी दुकान
टमाटर से सस्ती और
प्याज से अच्छी
पूरी सेल और 
फुल डिस्काउंट में
मात्र 12 रुपए में
खरीदी भूख 
गरीब की
अब इस का 
व्यापार करेंगे
एक्सपोर्ट कर 
देश का नाम करेंगे
ऐसे नेताओ ने ही तो
अपना देश 
विकासशील बनाया
जो जहाँ था 
उसे और गिराया
चलता रहे 
गिरता मरता
देश का विकास
बस पूरी होती रहे
नेताओ की 
लालची भड़ास
कभी नहीं 
बदलेगा देश अपना
कितने मर 
गए इसकी
तरक्की का लिए 
सपना
बहुत मधुर लगता है
''मेरा भारत महान '' 
सुनना
पर नामुमकिन 
है यहाँ
एक सही नेता चुनना
बिना नमक 
जो दाल
का हाल होता है
वही सही नेता 
के बिना
देश का हाल 
होता है
सुनलो दोस्तों
भारत को बचाने को
अब कोई 
भगवान भी नहीं
ये रोज़ अंधों 
के हाथों बिकता है.....

Thursday 18 July 2013

जब सोचने का नज़रिया 
बदल जाये तो 
राहें भटक जाया करती हैं,
मंजिलें तब दूर कहीं 
खो जाया करती हैं...
काफिले के संग 
चल निकलो तो बात अलग,
वर्ना परछाईं भी अक्सर 
साथ छोड़ जाया करती है...
वो लोग अलग होते हैं
जो डूब के पार निकलते हैं,
हौसलों से तो बिन पंख भी 
ऊँची उडान भरी जाया करती है...
स्वार्थी की कोई ज़ात नहीं 
जानवरों सा जीवन उसका,
इंसान को तो चुल्लू भर पानी में भी 
मौत आ जाया करती है...
ऊपर वाले ने भी 
खेल अजीब खेला है,
जो दुनिया उजाड़े किसी की 
किस्मत उसी को मिल जाया करती है,
'पियू' और क्या लिखे उसके सामने 
प्यार करने वालों की तो अक्सर
लकीरें भी धोखा दे जाया करती हैं...

Monday 8 July 2013





ये किस्मत का दोष है या 
अपनों से मिला रोष है 
उम्र के अंतिम पड़ाव में 
इस सूखी धरती पर मैं भूखा 
तन पर गरीबी की चादर तक नहीं 
पेट में मांग कर खायी गयी 
एक रोटी भी नहीं 
किस ओर तलाश करूँ कुआँ अपना 
बरसों से खाया नहीं भर पेट
ना देखा कोई सपना 
अपनों की परिभाषा मैं भूल चुका हूँ 
परिणाम अच्छाई का भूगत चुका हूँ 
अब नहीं किसी से कोई आशा 
ज़ख्म अपने खून से ही खा चुका हूँ 
अब जब तक ज़िन्दगी 
गिरते उठते चलनी है 
तो रोज़ प्याला भरना है 
मुझे इस जंगली भूमि को 
अपने पसीने से सीचना है 
भूखा हूँ थका नहीं 
रुका हूँ थमा नहीं 
बूढ़ा हूँ पर मरा नहीं
बैठ लूँ फिर शुरू करूँगा 
मशीन नहीं इन्सान हूँ
हौसलों की जान हूँ 
मैं एक किसान हूँ...

Wednesday 3 July 2013

मैं और भाई साथ .....



मैं और भाई साथ 
फिर रिमझिम बरसात 
अपनी कागज़ की कश्ती 
कश्ती और उन पर 
पतंगे भी हुए सवार 
दूर तक आती माँ की डाँट
भाई में भीग रही 
सुन भाई 
थोडा छाता मुझे भी बाँट 
मैं भीग गयी जो 
माँ तुम्हे बहुत डाँटेगी 
पता है फिर न लाओगे तुम साथ 
ठंडी हवा ये सुहाना मौसम 
चलो यही खेले भाई हम तुम 
अभी नहीं जाना 
मिल के खेले कुछ देर साथ 
चलेंगे माँ जब फिर आवाज़ देगी 
तब तक मज़े ले
इस बरसात के साथ