Thursday 6 February 2014

दिन अख़बार सा.......

दिन आता है जैसे
रोज़ अख़बार आता है
इका-दुक्का कुछ
आदतन सी ख़बरें
बाक़ी सभी
उबाते चर्चे, बेकार के फजीते
रोज़ पढ़ते है एक
नियम जैसा
कायदें में बँधा है ये
दिन ऐसा
शाम तक बासी हो
जाता है
दिन अखबार सा
रद्दी में बिछ जाता है
अलमारियों में
रंग लाता है
किताबों संग
बीत जाता है और
कभी रोटी संग
मिल जाता है
यूँही दिन भी रद्दी बन
यादों में
सोया रहता है
दराज़ों में
महका रहता है
किताबों में 
जीता रहता है और 
रोटी के लिए 
मरता है
दिन आता है जैसे
रोज़ अख़बार आता है ………..

Wednesday 5 February 2014

कुछ रिश्ते बेशक़ीमती होते है …….

कुछ रिश्ते अज़ीब,
किसी भी बन्धन से परे ,
आज़ाद पँछी जैसे होते है जो
किसी क़ैद में रहना और
डोर में बंधना पसन्द नहीं करते
जिनका साथ एहसासों में
ख्यालों में, याद में और
अक्सर सपनो में होता है

रोज़ की आपाधापी वाली
ज़िन्दगी से अलग़ जो
अपनी अहमियत शांत
एकल पलों में दर्शाना चाहते है
उनका साथ किसी अन्य
वास्तविक रिश्ते के भाव
से कहीं गहरा होता है

ऐसे रिश्तों की समझ
ईश्वरीय होती है जो
चुप से कहती है और
चुप सी सुनती है
अनोखे, अद्भुत एहसास
होते है इनके
सिर्फ दिल की
ज़ुबां बोलते है और
ख़ामोशी के लफ्ज़ पढ़ते है

कुछ रिश्ते रुहानी होते है
रुह में समाये एक
रुह के लिए ……….
कुछ रिश्ते
अल्फ़ाज़ों से अलग़ जो
इबादत से सहेजे जाते है

कुछ रिश्ते बेशक़ीमती होते है …….

Sunday 2 February 2014

मेरी पहली लघु कथा ...........

"ऐ मीनरी !! जा जरा पानी तो ले के आ , उफ़ गर्मी भी कितनी हो रही हैं अभी ब्लाक में एक मीटिंग में जाना हैं बेटी बचाओ अभियान की शुरुआत हैं आज वहां "

"इत्ती देर लगे क्या पानी लाने में !! एक तो भगवान् ने मेरी किस्मत में तीन तीन छोरिया लिख दी " ऊपर से सारा दिन किताबो में घुसी रहती है यह नही की घर का कम काज सीखे कलक्टर बनके सर पे नाचने के सपने देख रही ! " राना जी झल्लाते हुए जोर से चिल्लाये और पत्नी डर के मारे पानी का गिलास लिए उनके सामने पल्लू मुह में दबाये आन खड़ी हुयी .. क्या हैं यह !!! हैं !! ज्यादा सर पे न चढ़ा इन बावलियो को एक तो तीन तीन जन दी तूने उस पर सपने देखो इनके महारानियो के, चुपचाप घर का काम काज सिखा इन्हें .....जल्दी ही ब्याह कर दूंगा इनका जाये अपने सासरे कब तक बोझ ढोऊ इनका " " जा मेरा छाता और जूता ले के आ "

राना जी ब्लाक स्तर पर मुख्य पार्टी के अध्यक्ष मनोनीत किये गये थे आज उनको बेटी बचाओ पर भाषण देना था . उनके घर से जाते ही बेटी ने उनकी कुर्सी पर पड़े रह गये कागज को उठाया और जोर जोर से पढने लगी " बेटी किस्मत वालो के घर ही जन्म लेती हैं , उनके होने से घर स्वर्ग बन जाता हैं , एक बेटी को पढ़ाने से दो घरो का भला होता हैं आज बेटियाँ ही बेटो से ज्यादा समाज और संसार में नाम रोशन कर रही हैं ..... बेटी के जन्म को खुले दिल से अस्वीकार करने वाले मानव मात्र पर धब्बा हैं आखिर उन्होंने भी एक माँ की कोख से जन्म लिया हैं .मुझे गर्व हैं मैं तीन बेटियों का पिता हूँ मेरी बेटिया पूरे सम्मान के साथ घर पर अपने ऊँचे सपनो की उड़ान भर रही हैं " पढ़ते पढ़ते मीना की आवाज रूंध गयी आँखे अविरल बहने लगी और उसने डबडबायी आँखों से माँ की तरफ देखा और फूट फूट कर रोने लगी . कागज का पुर्जा हवा में फडफडा रहा था………