Sunday 23 June 2013




मैं राधा तू मोहन मेरा
काहे को ब्रज से दूर तू जावे
ऐसो कौन है मोते प्यारो
के रोवत मोहे छोड़ तू जावे
कैसे कहूँ के मन व्यकुलाये
कहीं भी तुझ बिन ठौर पाये
कभी इत जाये कभी उत जाये
रे मोहन तू काहे आये....

ठहरे ना वावला होइ जाये
रह - रह के ह्रदय कुलबुलाये
सोचन ना दे मति भरमाये
तरसें आखियां दरस को हरदम
टुकुर टुकुर बस राह टुकुरायें
रे मोहन तू काहे आये....

जैसे बैरी बेदर्दी होइ जाये
लागे तोहे बैरन की हाये
मोसे तोरी प्रीत तो गहरी
पर सौतन को भय है सताये
तू सीधो वो तेज़ पड़ी तो
सोचके मन बस बैठा जाये
रे मोहन तू काहे आये....

करूं मनुहार प्रभु के आगे
करे कृपा तोहे मेरा राखें
तप जप व्रत सब मोहे आवे
दूंगी परीक्षा जो तू आवे
दिन ते अब लग सांझ भयी
मोरे नैनन की आस गयी
विकट समय ये बहुत रुलाये
रे मोहन तू काहे आये.....

Saturday 22 June 2013




भयानक है ये रूप
नहीं देखा जाता 
प्रकति का ये विकराल रूप 
अपनी ही संतान को 
मिटाने पर तुली क्यूँ 
नष्ट कर रही क्यूँ अपनी ही रचना 
नहीं देखा जा रहा इतना विकृत स्वरुप
माना गलती अपनी ही है तुझे जो परेशां किया 
पर किया क्या इतना जघन्य अपराध 
जो तूने बदला यूँ लिया 
अपनी ही बनायीं स्रष्टि को 
क्यूँ तू उजाड़ रही ......
नहीं देखा जाता प्रकति तेरा रूप ये …नहीं देखा जाता
सबने क्या तेरा बिगाड़ा 
क्यूँ सर से माँ का साया छीन लिया 
बच्चे बिलखते रह गये 
पिता चिर निंद्रा में सो गया 
बहन ने भाई से जो वादा लिया 
भाई ने पत्नी को जो वचन दिया 
क्यूँ छिन्न भिन्न वो हो गया 
इच्छा थी प्रभु दर्शन की 
क्यूँ अपने ही पास बुला लिया 
करुण वेदना सुनी नहीं जाती प्रकति की ये 
त्रासदी देखी नहीं जाती .....
उस संगिनी का साथ देखा …..
अपने पति से प्यार देखा
गले लगा के उसके शव को रोते बिलखते देखा ....
आप को कुछ नही होगा 
आप को कुछ नही होगा ….
उसकी व्यथा को महसूस कर देखा 
दिल फूट पड़ा है इस दुःख पर 
कभी ऐसा मंज़र न देखा....
इसपर मौका परस्त इन्सान भी आया
जिसे रहम न बिलकुल आया 
अपनी जेबें कैसे भरे लिए मन वो 
अपनी औकात पर आया 
क्यूँ दिल नहीं पसीजा रोता बिलखता देख
एक हाथ बढ़ाते तो शायद हौसलो को जान मिले...
वक़्त कठिन है साथ निभा लो 
कल शायद ये समय फिर आये 
तो अभी से अपनी राह बनालो 
प्रकति ही तो विकराल हुई है 
इंसानियत क्यूँ सोयी पड़ी है 
रो रहा दिल जान कर ये सब 
उनकी क्यूँ ना नज़र पड़ी है 
बेबसी ये बढती चली है.....
अपने हाथों को थोडा कष्ट सब देना 
अपने लोगों के लिए प्रार्थना करना 
कोई भी जननी हत्यारिन नहीं बन जाती 
जब तक संतान ही उसको नहीं सताती 
प्रकति का क्रोध समझो दोस्तों 
मिलकर सहयोग करो दोस्तों...

Wednesday 12 June 2013



वक़्त से पहले ही मेरे कदम
चल निकले है मजबूरियों की राह पर
चुनाव नहीं था पास बस चुनना था…..
दो वक़्त की रोटी और मैं
नफरतें सबकी नज़रों से बयां होती है
ऐसे घूरते क्यूँ हो
समझता हूँ औकात अपनी
ये ज़िन्दगी हमने नहीं मांगी थी
कभी मिले जो…..ये सोगात है तुम्हारी
गुनाह हमारा कुछ नही ये मिले विरासत में ….
यही परंपरा हमारी
कभी बहन कभी मैं यूँ ही आती रही बारी हमारी
मैंने दूर से देखा है सुन्दर घर
प्यारे माँ पा मुझे दुलारती मेरी बहना
खिलोनो से भरी मेरी बाहें उन्हें सँभालते नानी नाना
मैं जागा और आँख मली और छू सब हो गया
बस मैं था और बर्तन पुराने
ओह …..ये थे सपने सुहाने
जो अपने घर में जानवर पालते है काश वो मुझे पालें
पर कहाँ बड़े घर वालो के दिल बड़े होते है
यही है वो जिनकी वजह से हम फुटपाथ पे सोते है
पैसा कमाना होता है शौक़
फिर क्यूँ न चलता रहे किसी के घर में शौक
मैं सच अभी से समझा और वक़्त की मार भी
जो हम वक़्त से पहले
बड़े हुए तो वक़्त भी अपना यार हुआ
यही ठीक चलो छोड़े शिकवे
दुनिया भी तमाशेबाजी हुई ,
देख तमाशे ताली पीटी और घरों को चल पड़ी
आज बोलेंगे सब बोलेंगे फिर लबों को स़ी लेंगे
मैं यही था यही रहूँगा चाहे फिर सब चाँद चड़े
रात यही फुटपाथ पर मेरी फिर रात बिना चाँद सही
हाँ मैं बाल मजदूर आज दिन है मेरा
किताबों में अख़बारों में भाषणों में और चंद बातों में
यही मेरी पहचान सही मैं बेनाम सही
मैं एक मजदूर सही......