Tuesday 27 August 2013

दिल पर अगर पहरा होता
तो रिश्ते दूर से ही
देख भाग जाते
हर बात का जैसे
सार नहीं होता
वैसे ही हर रिश्ते का
नाम हो जरुरी नहीं
बहुत कुछ होता है
उनमे अनकहा
पर होता नहीं
कुछ भी अनसुना
परिभाषा से परे
अर्थों से उलट
बहुत कुछ जो नहीं
किताबों में
वो मिल जाता है यहाँ
जन्म से मिले
रिश्ते अपने है
ये सुनते है हम सभी
सुनते सुनते
जब कोई रिश्ता ले जन्म
अज़ब रिश्ते होते है वही
कोई ड़ोर क्या बांधे
कौन ड़ोर से खिचे
दिखते नहीं अक्सर
दुआओ के साये यहीं
दिल के बाज़ार में
बस यही महंगा
मिलता है
खर्चना सोच समझ कर
बहुत सस्ते भी में बिकता है
मैं क्या कहूँ .....
किन लफ़्ज़ों में बयां करू
इसका हर शब्द
हीरों संग तुलता है .......

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