Wednesday 27 November 2013

दहकता अफगार नज़र आता है
मुझे मेरा प्यार नज़र आता है

बड़ा खौंफज़दा है इंसान
हर बात पर ख़बरदार नज़र आता है

मुल्क की आबोहवा बहकी लगती है
चढ़ता बुखार नज़र आता है

बेखोफ़ है आज का इंसान बड़ा
किसी सल्तनत का ख़रीददार नज़र आता है

ज़िन्दगी कट रही उधारी के चलते
साँसों पर लगा पहरेदार नज़र आता है

नहीं समझते थे तो अच्छा था
समझ का इंसान बीमार नज़र आता है

भरोसे का खून फैला पड़ा है गलियों में
दोस्ती में भी खार नज़र आता है….

Sunday 24 November 2013

फिराक़-ए-यार के तसव्वूर को
बेवजह ज़ाया न करो

बेशकीमती चीज़ है जनाब
जो ख्यालों में मिला करती है……

Thursday 21 November 2013

ज़िन्दगी बन्द आँखों में ''अपना ''
खुली आँखों में ''सपना '' है

जिसे मिले जैसी मिले वो उसकी ''मिसाल '' है

हार जाओ तो ''नसीब''
जीतो तो ''जहान '' है ..........

Monday 11 November 2013


उनके हाथों का स्पर्श 
मुझे आज भी महसूस होता है 
नर्म मख़मली
नाज़ुक परों जैसे
उनकी उँगलियाँ मानो
ठंडी कोमल ओस की 
बूंदों में भीगे ग़ुलाब की 
कली हो जैसे 

बुज़र्गों में हमें सिर्फ 
इक नानी ही तो मिली थी 
इसलिय हम सब बच्चों के लिए 
वही दादा दादी और नाना थी 
पुराने समय कि जरुर थी 
पर समझ हमारे वक़्त की 
रखती थी 
हमारे मज़ाक पर ठहाके 
और हम संग बच्चा बन जाती थी 
कभी लगा ही नहीं की 
नानी हमारी जनरेशन कि नहीं 
उनका जन्मदिन सब के लिए 
त्यौहार होता था 
और हमारा उनके लिए ईद 
वो थी तो परिवार में सब ठीक था 
सब का आना जाना था 
मामा मौसी सब पास थे 
उनके जाने के बाद समय 
सच में मॉडर्न हो गया 
ननिहाल खत्म हो गया 
मामा मौसी भी ओर छोर हो गए 
बच्चे सब बड़े हो गए 
समय भी मिलना समाप्त हो गया 
कभी कभी लगता है 
सब पा कर भी हमने सब खो दिया 
एक ईंट क्या निकली दीवार से 
अपना घर ढहा दिया 
जब कभी आते जाते 
किसी बुजुर्ग को देखती हूँ 
मन करता है पास जा कर 
हाथ थाम लूँ और एक बार 
फिर वो नर्म मखमली 
एहसास समेट लूँ 
अपने हाथों में 
किसी बुजुर्ग का होना 
कैसा होता है घर में 
ये केवल 
बरगद के पँछी ही बता सकते है.....