Sunday 27 October 2013


तब दूसरों की मुंडेरों पर रखे 
दीयों का तेल अपने दीयों में 
उड़ेल लिया करते थे ....
देर रात तक यही करते रहते 
और दिवाली के अलगे दिन भी 
तब दीये जलाने का मतलब 
नहीं समझती थी 
अब जब समझी हूँ तो....दीये नहीं 
मोमबत्तियां और बनावटी बिजली से 
जलने वाले दीये जलाये जाते है......
अब कहाँ से दूसरों का तेल चोरी कर 
देर रात तक बदमाशी करें
अब तो बस ...महंगे कपडे पहन 
सीडी लगा कर आरती कर
फोटो खीचा कर दिवाली मनाते हैं
और अलगे दिन भी
यही दिवाली फेसबुक पर मनाते है...
सोचती हूँ आधुनिकता ने हमे 
अपनों से तो दूर कर ही दिया 
साथ ही सरलता के लिए 
हम अपने त्योहारों से
और वास्तविकता से दूर हो गए हैं....
या शायद ये हम जैसे
बाकी लोगो की बातें है जो 
पढ़ लिख कर लॉजिक ढूंढ़ते है हर बात में
सिवाय ये मानें कि कुछ
बिना दिमाग लगाये भी किया जाता है
ख़ुशी और सिर्फ अपनों की 
मुस्कान के लिए किया जाता है...
अँधेरे से घिरी राह पर जब मैंने 
दीयों को ताकती 
बचपन की नज़रों को देखा
तो मुझे मेरे बचपन की यूँही याद आ गयी...
हम छोटे ही अच्छे थे
न दिमाग की जरूरत थी 
न सोच की जंजीरे थी
बस ख़ालिस बचपन था और हर दीवार लांघता लड़कपन

क्या सोचूं 
क्या बताऊँ मैं 
अपने ही अंतर्मन में धँसती जाऊँ मैं 

बचपन के तन पर 
जिम्मेदारियों का चोला 
कौन समझेगा किसको बताऊँ मैं 

त्यौहारों से गलियां सजती चली 
मेरे घर में अँधेरा 
कैसे सजाऊँ मैं 

नसीबों की रौशनी नहीं 
आँगन में मेरे 
एक दीया तेल का भी जो जलाऊँ मैं...

बड़े-बड़े घरों पर 
लटकते झूलते दीये 
देख देख उनको मन ही मन मुस्कुराऊँ मैं 

कितना उजाला 
कितनी देते चमक 
एक मुझे जो मिले घर जगमगाऊँ मैं 

मेरे द्वार को भी 
लक्ष्मी देख लेंगी 
धनवर्षा की एक बूंद जो पाऊँ मैं 

दीयों से जगमग फिर मेरा 
घर आँगन होगा 
हर साल दिवाली फिर ऐसे मनाऊँ मैं....

Saturday 19 October 2013


अज़ब बेचारगी देखी...

आज चलती राहों 
पर ज़िन्दगी की लाचारी देखी 
सच से बचती नज़रे देखी
देखती नज़रो से बचती 
नज़रे देखी...
पेट भर खाते पेट निकले देखे 
पेट के लिए करते 
छीनाझपटी देखी....
जमीं पर बिखरे भोज़न पर 
गडी भूखी नज़रे देखी 
वो जो खाने के शौक में 
थालियाँ भर लेते 
और फ़िगर की दुहाई दे कर 
भरी थाली कूड़े में सरकाते 
गरीब की भूख पर अमीरों के शौक की 
वाहवाही देखी...
कूड़े में छानते पेट की आग 
की तलब देखी 
आज चलती राहों
पर गुज़रती ज़िन्दगी की लाचारी देखी 
कुछ थोड़े खाने के लिए 
इंसान से इंसान की जंग देखी....

Tuesday 15 October 2013


ये गुज़रती शामे 
ये ढलती तन्हाई 
गिरते पत्तों पर 
बिखरती धूप 
सिमटी सिमटी सी हवाएँ 
महकती खुशबू 
ये खाली कुर्सियाँ 
वीरान सा मैदान .....
कभी परछाईयां 
दोड़ा करती थी यहाँ 
हाथ ऊपर किये
शोर मचाते हुए …..
वक़्त की चिलचिलाती धूप ने 
जिस्म को जला और 
ज़ेहन को सिकोड़ दिया 
चारदीवारी में उम्र के पड़ाव 
बनावटी धीमी सांसें लेते है 
समझ बढ़ जाती है 
दिन के चढ़ने के साथ 
शाम ढले स्तर बढ़ जाता 
और रात ......
रात तो गोलियाँ 
निगल पहर बढ़ाती है 
यूँही गुज़रते 
ज़िन्दगी के बढ़ते दिन.....
दूर से आज जब देखा 
बीतती ज़िन्दगी को 
तो ...याद आया.....
ये गुज़रती शामे 
ये ढलती तन्हाई 
गिरते पत्तों पर 
बिखरती धूप 
सिमटी सिमटी सी हवाएँ 
महकती खुशबू 
ये खाली कुर्सियाँ 
वीरान सा मैदान......
ये भागती दुनियाँ 
और पीछे दोड़ते हम......

Sunday 6 October 2013

सबके लिए लिखती हूँ .....आज कुछ अपने दोस्तों के लिए लिखा है .....ज़िन्दगी में बहुत कड़वे और मीठे एहसास मिले पर मेरे दोस्तों का साथ मुझे सहज रहने में मेरी हमेशा मदद करता है .....यूँ तो मेरी सबसे करीबी सिर्फ एक ही है ....पर यहाँ अपने सभी दोस्तों को मैंने याद किया है .....

तुम दोस्त हुए तो
आओ कुछ
बातें कर ले
तुम अपनी कह देना
कभी लगे तो
मेरी भी सुन लेना
मेरी चुप्पी से
समझ लेना
मैं तुम्हारे शोर से
पहचान लुंगी
जो बात
दिल को बुरी लगे
तुम बता देना
मैं भी जता दूंगी
कभी गम जो आएगा
दोस्ती पर
तुम उदास हो लेना
मैं रो लूंगी
खुशियों की चाबी जो
मुझे मिली
तुम अपने गम पर
ताला लगा लेना
मैं वही बैठ पहरा दूंगी
तुम खुशियों की बारिश का
मज़ा लेना
मैं तुम्हे भीगा देख
खुश हो लुंगी
तुम दोस्त हुए तो
मेरे हिस्सेदार हुए हो
तुम नयी राहे तलाशना
मैं तुम्हे दीया दिखा दूंगी
अपनी मंज़िल पर तुम
बढ़ते रहना
मैं तुम्हारा मनोबल
बढाती रहूंगी
मेरी हँसी में तुम
मुस्कुरा देना
मैं दिल से ख़ुशी
मना लूंगी
मेरे गम में तुम बस
साथ देना और
मैं मुश्किल वक़्त
भी गुज़र लूंगी
तुम दोस्त हुए तो
आओ कुछ
बातें कर ले
तुमअपनी कह देना
कभी लगे तो
मेरी भी सुन लेना

Tuesday 1 October 2013

मैंने नहीं देखा
तुमने
देखा हो तो बताना
अपना कैसा
होता है कोई ?
वो हँसता है
या सिर्फ रोता है
जागता है
या सिर्फ सोता है
देता है
या सिर्फ मांगता है
अपना बना लेता है
या सिर्फ
दिखावा करता है
गले लगाता है
या सिर्फ
काँटे चुभोता है
प्यार देता है
या सिर्फ
आँसू देता है
हमेशा साथ देता है
या बीच राह
में छोड़ जाता है
मैंने नहीं देखा कभी
तुमने
देखा हो तो बताना
अपना कैसा
होता है कोई
क्या वो सच में होता है
या सिर्फ
मैंने किस्सा सुना था कोई ?