Tuesday 24 September 2013

हवाओं की तेज़
चलती सांसे
डराती है मुझे
कुछ देख आई
शायद
घबरा गयी
हाफ़ रही है
न जाने कहाँ
का माहोल
इंसानियत के जानवरों
ने बिगाड़ दिया
सोच रही हूँ क्या
कह दूँ इन को
की ये थम जाये
बहक जाये
शांत हो जाये
कुछ पल के लिए ……
फिज़ा के दलालों
का ईमान नहीं
धर्म नहीं ,
जात नहीं
इंसानियत नहीं
ये सिर्फ
फिज़ा को बदनाम
करना जानते है
सड़क पर ला कर
सरे आम करना
जानते है
आबरू का मतलब
उनके लिय कुछ नही
आबरू के नाम पर
कपडे उतारना
जानते है
तू सब्र कर
थोडा थम जा
इतना धडकनों को न
बढ़ा ......चल
तेरे लिए गुनगुना दूँ
तू बैठ ....
तेरा मन
मैं बहला दूँ ......

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