रात का दूसरा पहर
दूर तक पसरा सन्नाटा और
गहरा कोहरा
टिमटिमाती स्टीटलाइट
जो कोहरे के दम से
अपना दम खो चुकी है लगभग
कितनी सर्द लेहर लगती है
जैसे कोहरे की प्रेमिका
ठंडी हवा बन गीत गाती हो
झूम जाती हो
कभी कभी हल्के से
कोहरे को अपनी बाहों में ले
आगे बढ़ जाया करती
पर कोहरा नकचढ़ा बन वापस
अपनी जगह आ बैठता
ज़िद्दी कोहरा प्रेम से परे
बस अपने काम का मारा
सर्द रात में खुद का साम्राज्य
जमाये है हर तरफ
गली, दुकान, बड़े और
छोटे मकान, पेड़, पौधे
और सड़कों कि स्ट्रीटलाइट
पर जमा बैठा है
सारे लोगों को ठिठुरा कर
घर भेज दिया
सोचती हूँ
क़ाश ये कोहरे जैसा कुछ
मन में भी होता जो
मन की सड़को से
चिन्ताओं को ठिठुरा कर
वापस समय में विलीन कर देता
और मन को खुद से ढक कर
एक सुकून भरी रात तो देता मुझे
काश !!!......
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