Sunday 8 December 2013


रात का दूसरा पहर 
दूर तक पसरा सन्नाटा और 
गहरा कोहरा 
टिमटिमाती स्टीटलाइट 
जो कोहरे के दम से 
अपना दम खो चुकी है लगभग 
कितनी सर्द लेहर लगती है 
जैसे कोहरे की प्रेमिका 
ठंडी हवा बन गीत गाती हो 
झूम जाती हो 
कभी कभी हल्के से 
कोहरे को अपनी बाहों में ले 
आगे बढ़ जाया करती 
पर कोहरा नकचढ़ा बन वापस 
अपनी जगह आ बैठता 
ज़िद्दी कोहरा प्रेम से परे 
बस अपने काम का मारा 
सर्द रात में खुद का साम्राज्य 
जमाये है हर तरफ
गली, दुकान, बड़े और 
छोटे मकान, पेड़, पौधे 
और सड़कों कि स्ट्रीटलाइट 
पर जमा बैठा है 
सारे लोगों को ठिठुरा कर 
घर भेज दिया

सोचती हूँ 
क़ाश ये कोहरे जैसा कुछ 
मन में भी होता जो 
मन की सड़को से 
चिन्ताओं को ठिठुरा कर 
वापस समय में विलीन कर देता 
और मन को खुद से ढक कर 
एक सुकून भरी रात तो देता मुझे 
काश !!!......

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