Friday 6 December 2013


सुनहरी ठंडी धूप 
मीठी सी महक लिए
खिलते फूल 
मचलती टिमटिमाती किरणे 
चेहरे पर पड़ते ही 
दिल छू लेती है 

शाखों से गिरती छाव 
मालूम होता है जैसे 
हाथ हिला कर 
ख़ुशी जताती हो 
मेरे आने की

यूँ समेटे है सूरज 
अपनी रोशनी में इस 
मंज़र को 
जैसे गहरे अंधकार के 
बाद एक दीया 
जला हो 

हरी मखमली घास पर 
यूँ उतरते है 
पेड़ों से पत्ते 
जैसे सूरज की बाहों में 
सभी सोने चले हो 

प्रकृति की सुंदरता 
शब्दों से परे 
जैसे ईश्वर का 
स्वरुप आँखों से परे हो..

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