सुनहरी ठंडी धूप
मीठी सी महक लिए
खिलते फूल
मचलती टिमटिमाती किरणे
चेहरे पर पड़ते ही
दिल छू लेती है
शाखों से गिरती छाव
मालूम होता है जैसे
हाथ हिला कर
ख़ुशी जताती हो
मेरे आने की
यूँ समेटे है सूरज
अपनी रोशनी में इस
मंज़र को
जैसे गहरे अंधकार के
बाद एक दीया
जला हो
हरी मखमली घास पर
यूँ उतरते है
पेड़ों से पत्ते
जैसे सूरज की बाहों में
सभी सोने चले हो
प्रकृति की सुंदरता
शब्दों से परे
जैसे ईश्वर का
स्वरुप आँखों से परे हो..
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