उनके हाथों का स्पर्श
मुझे आज भी महसूस होता है
नर्म मख़मली
नाज़ुक परों जैसे
उनकी उँगलियाँ मानो
ठंडी कोमल ओस की
बूंदों में भीगे ग़ुलाब की
कली हो जैसे
बुज़र्गों में हमें सिर्फ
इक नानी ही तो मिली थी
इसलिय हम सब बच्चों के लिए
वही दादा दादी और नाना थी
पुराने समय कि जरुर थी
पर समझ हमारे वक़्त की
रखती थी
हमारे मज़ाक पर ठहाके
और हम संग बच्चा बन जाती थी
कभी लगा ही नहीं की
नानी हमारी जनरेशन कि नहीं
उनका जन्मदिन सब के लिए
त्यौहार होता था
और हमारा उनके लिए ईद
वो थी तो परिवार में सब ठीक था
सब का आना जाना था
मामा मौसी सब पास थे
उनके जाने के बाद समय
सच में मॉडर्न हो गया
ननिहाल खत्म हो गया
मामा मौसी भी ओर छोर हो गए
बच्चे सब बड़े हो गए
समय भी मिलना समाप्त हो गया
कभी कभी लगता है
सब पा कर भी हमने सब खो दिया
एक ईंट क्या निकली दीवार से
अपना घर ढहा दिया
जब कभी आते जाते
किसी बुजुर्ग को देखती हूँ
मन करता है पास जा कर
हाथ थाम लूँ और एक बार
फिर वो नर्म मखमली
एहसास समेट लूँ
अपने हाथों में
किसी बुजुर्ग का होना
कैसा होता है घर में
ये केवल
बरगद के पँछी ही बता सकते है.....
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