Sunday 23 June 2013




मैं राधा तू मोहन मेरा
काहे को ब्रज से दूर तू जावे
ऐसो कौन है मोते प्यारो
के रोवत मोहे छोड़ तू जावे
कैसे कहूँ के मन व्यकुलाये
कहीं भी तुझ बिन ठौर पाये
कभी इत जाये कभी उत जाये
रे मोहन तू काहे आये....

ठहरे ना वावला होइ जाये
रह - रह के ह्रदय कुलबुलाये
सोचन ना दे मति भरमाये
तरसें आखियां दरस को हरदम
टुकुर टुकुर बस राह टुकुरायें
रे मोहन तू काहे आये....

जैसे बैरी बेदर्दी होइ जाये
लागे तोहे बैरन की हाये
मोसे तोरी प्रीत तो गहरी
पर सौतन को भय है सताये
तू सीधो वो तेज़ पड़ी तो
सोचके मन बस बैठा जाये
रे मोहन तू काहे आये....

करूं मनुहार प्रभु के आगे
करे कृपा तोहे मेरा राखें
तप जप व्रत सब मोहे आवे
दूंगी परीक्षा जो तू आवे
दिन ते अब लग सांझ भयी
मोरे नैनन की आस गयी
विकट समय ये बहुत रुलाये
रे मोहन तू काहे आये.....

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