हे मन कर कल्पना
बना फिर अल्पना
खोल कर द्वार
सोच के कर पुनः संरचना
हे मन कर कल्पना
क्यूँ मौन तू हो गया
किस भय से तू डर गया
खड़ा हो चल कदम बढ़ा
करनी है तुझे कर्म अर्चना
हे मन कर कल्पना
छोड़ उसे जो बीत गया
भूल उसे जो रीत गया
निश्चय कर दम भर ज़रा
सुना समय को अपनी गर्जना
हे मन कर कल्पना
पथ है खुला तू देख तो
नैनो को मीच खोल तो
ऊंचाई पर ही फल मीठा मिले
बिन गाये नहीं होती वन्दना
हे मन कर कल्पना
किनारे छोड़ नदी में उतर
तैर कर असत्य पार आ
बिन मरे न कोई स्वर्ग पाये
गढ़नी है तुझे नयी अभिव्यंजना
हे मन कर कल्पना……
बना फिर अल्पना
खोल कर द्वार
सोच के कर पुनः संरचना
हे मन कर कल्पना
क्यूँ मौन तू हो गया
किस भय से तू डर गया
खड़ा हो चल कदम बढ़ा
करनी है तुझे कर्म अर्चना
हे मन कर कल्पना
छोड़ उसे जो बीत गया
भूल उसे जो रीत गया
निश्चय कर दम भर ज़रा
सुना समय को अपनी गर्जना
हे मन कर कल्पना
पथ है खुला तू देख तो
नैनो को मीच खोल तो
ऊंचाई पर ही फल मीठा मिले
बिन गाये नहीं होती वन्दना
हे मन कर कल्पना
किनारे छोड़ नदी में उतर
तैर कर असत्य पार आ
बिन मरे न कोई स्वर्ग पाये
गढ़नी है तुझे नयी अभिव्यंजना
हे मन कर कल्पना……
किनारे छोड नदी में उतर, तैर कर असत्य पार आ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियां
प्रणाम स्वीकार करें
शुक्रिया अन्तर जी .....
Deleteएक गुजारिश है
ReplyDeleteहो सके तो वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें
सर कुछ लोगो के लिए जरुरी है .....समस्या हेतु खेद है ...
Delete