कालिख़
विकृत ख़यालों की
कुरूप मानसिकता की
जमती जाती कुरूतियों की
बहुत चीकट कई परतों वाली
मोटी
चमड़ी जैसी
घिनौनी रूप में जीवित है
उस इंसान में जो
मानवीय अहसासों के साथ
पल पल खेलता है
उन्हें तोड़ कर मरोड़ कर
आनन्द लेता है
अहसासों के ज़िस्म को
नोचता, खरोंचता
दबोचता नीले-नीले निशान
बना कर
उनका उपहास बनाता है
मानव
विकृत ख़यालों की
कुरूप मानसिकता की
जमती जाती कुरूतियों की
बहुत चीकट कई परतों वाली
मोटी
चमड़ी जैसी
घिनौनी रूप में जीवित है
उस इंसान में जो
मानवीय अहसासों के साथ
पल पल खेलता है
उन्हें तोड़ कर मरोड़ कर
आनन्द लेता है
अहसासों के ज़िस्म को
नोचता, खरोंचता
दबोचता नीले-नीले निशान
बना कर
उनका उपहास बनाता है
मानव
का जन्म ही प्रेम है
उसका जीवन प्रेम की
निशानी और
उसका जीवन प्रेम की
निशानी और
प्रेम की धरोहर है
फिर कैसे ?
एक प्रेम का बीज
फलाहारी वृक्ष बनते-बनते
काँटों से लिप्त, दुर्गन्ध सहित
गला, सड़ा, विषैला, जंगली
झाड़ बन जाता है
कैसे??
जन्म तो
फिर कैसे ?
एक प्रेम का बीज
फलाहारी वृक्ष बनते-बनते
काँटों से लिप्त, दुर्गन्ध सहित
गला, सड़ा, विषैला, जंगली
झाड़ बन जाता है
कैसे??
जन्म तो
मानव रुपी ही था
फिर परवरिश में क्या हुआ
क्यूँ उसका पालन-पोषण
कुण्ठित और अपाहिज़
बन गया
या
फिर परवरिश में क्या हुआ
क्यूँ उसका पालन-पोषण
कुण्ठित और अपाहिज़
बन गया
या
यूँ कहूँ कि
बीज के पौध बनने से पहले ही
उसे कीड़ा खा गया
स्वार्थ का कीड़ा, बदले का कीड़ा
बीज के पौध बनने से पहले ही
उसे कीड़ा खा गया
स्वार्थ का कीड़ा, बदले का कीड़ा
असामाजिकता का कीड़ा
जो ज़हरीला और रोगी है
जिसने न जाने कितने ही
परिवारों को नष्ट किया
सोच को नपुंसक बना दिया
जिसके होने से
संस्कारों को लकवा मार गया
और आदर-सम्मान कि बातें
दीमक खा गयी
कैसे
जो ज़हरीला और रोगी है
जिसने न जाने कितने ही
परिवारों को नष्ट किया
सोच को नपुंसक बना दिया
जिसके होने से
संस्कारों को लकवा मार गया
और आदर-सम्मान कि बातें
दीमक खा गयी
कैसे
बचायें प्रेम के
अनुसरण पाते पौध को
कैसे रोकें
कैसे रोकें
इनके विनाश को
कैसे??........
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