मैं प्रकृति मैं दुनियाँ
फिर भी कमज़ोर और असहाय
इसलिए नहीं की मुझमें साहस नहीं
इसलिए की मुझमें नफ़रत नहीं
मैं जननी मैं देवी
फिर भी पैरों तले मेरी ज़बां
इसलिए नहीं की मुझमें आवाज़ नहीं
इसलिए की मुझमें शोर नहीं
मैं चाहत मैं दुआ
फिर भी बदचलन और कुल्टा
इसलिए नहीं की मुझमें आग नहीं
इसलिए की मुझमें जलन नहीं
मैं श्रृष्टि की रचनाकार
फिर भी हाथों से बेक़ार, पैरों से लाचार
इसलिए नहीं की मुझमे ज़ज्बा नहीं
इसलिए की मैं निर्थक नहीं, स्वार्थी नहीं, कठोर नहीं
मैं औरत हूँ
शांत हूँ इसलिए दुनिया है
न करो इतना विवश की हहाकार मच जाये
न करो इतना अत्याचार की बाग़ लूट जाये
मैं बनाती हूँ इसलिए मिटा भी सकती हूँ
पर मैं कुम्हार हूँ, ठेकेदार नहीं
जो करती व्यापार नहीं…………
फिर भी कमज़ोर और असहाय
इसलिए नहीं की मुझमें साहस नहीं
इसलिए की मुझमें नफ़रत नहीं
मैं जननी मैं देवी
फिर भी पैरों तले मेरी ज़बां
इसलिए नहीं की मुझमें आवाज़ नहीं
इसलिए की मुझमें शोर नहीं
मैं चाहत मैं दुआ
फिर भी बदचलन और कुल्टा
इसलिए नहीं की मुझमें आग नहीं
इसलिए की मुझमें जलन नहीं
मैं श्रृष्टि की रचनाकार
फिर भी हाथों से बेक़ार, पैरों से लाचार
इसलिए नहीं की मुझमे ज़ज्बा नहीं
इसलिए की मैं निर्थक नहीं, स्वार्थी नहीं, कठोर नहीं
मैं औरत हूँ
शांत हूँ इसलिए दुनिया है
न करो इतना विवश की हहाकार मच जाये
न करो इतना अत्याचार की बाग़ लूट जाये
मैं बनाती हूँ इसलिए मिटा भी सकती हूँ
पर मैं कुम्हार हूँ, ठेकेदार नहीं
जो करती व्यापार नहीं…………
उम्दा
ReplyDeleteअच्छी लगी
सचेत करती नारी
प्रणाम
पंसंदगी का शुक्रिया अन्तर जी ....
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